लेखक की कलम से

हार जाएगा संकट …

 

लगता क्या है संकट तुमको, मानव तुम से हार जाएगा ।

अपने संघर्ष पथ को क्या मानव डर से छोड़ जाएगा ।।

 

 संकट का आना तो बस जन्म से ही होता शुरू  ।

फिर उस संकट से बोलो तुम घबराना कैसे करूं शुरू ।।

 

कदम कदम पर ठोकर लेकर जब चाहा तुम आ धमका ।

यह मेरा जीबठता देखो हर पल तुमसे लड़ता मिला ।।

 

 जब चलना भी नहीं सीखा था तुम गिराने को थे तैयार ।

 अब तो बस राह साथ है फिर भी तेरा ठोकर तैयार ।।

 

दर्द बहुत है तेरे दिए जिसका अब नहीं रखता हिसाब ।

अब भी तुमको रहम नहीं है क्यों करते हो हम पर तुम वार ll

 

 माना तेरा अस्तित्व यही रोड़ा बनना जीवन में ।

 पर एक बार को खुद सोचो तेरा क्या अस्तित्व इस जीवन में  ।।

 

मानव बनकर हम आए हैं हमें निभाना अपना धर्म ।

देश और समाज के खातिर हमें जलाना अपना तन ।।

 

अगर इस जद्दोजहद में मिल जाता तुम्हारा सार्थक साथ ।

 जीवन के इस उथल-पुथल में कम हो जाता अपना अवसाद ।।

 

लेकिन तुमने तो जिद पकड़ा है करते रहना हमें परेशान ।

संकट मुसीबत लाते रहना करते रहना हमें परेशान ।।

 

 दो सांस अगर मैं चैन का लूं तो बोलो क्या तेरा घट जाएगा ।

 अंतर्मन से बस दो मधुर शब्द ही तो निकल पाएगा ।।

 

तुमने ठाना आते रहना है संकट बन कर जीवन में बारंबार ।

हमने भी ठाना है मन में तुम्हें हराना बारंबार ।।

 

इस हार जीत के खेल में आखिर जीत तुम्हारा ही होगा ।

 जीत गए जो तुम हमसे फिर जीवन का मकसद खत्म होगा ।।

 

फिर भी मन संकल्प लिए तुम्हें हराते रहना बारंबार ।

कभी तो हार मान कर तुम छोड़ जाओगे मेरा राह ।।

 

©कमलेश झा, शिवदुर्गा विहार फरीदाबाद

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