यादे …
यादे,
प्यारी यादे,
ताज़ा हो जाती है,
बरखा आने से,
कुछ गीत गाने से,
कुछ गुनगुनाती हूँ,
कुछ अश्क बहाती हूँ,
कि सब याद आते है,
वो आँगन अपना था,
प्यारा एक सपना था,
संग संग खेला था,
कुछ दर्पण भी तोड़ा था,
वो पापा संग,
भाई बहना संग,
प्यारी मां संग,
कितने खेल खेले थे,
कभी कहानियां सुनते थे,
कभी कुछ गाते थे,
वो बचपन मे सब हँसते गुनगुनाते थे,
जब बारिश आती थी,
नाव बनाते थे,
कितना तैराते थे,
कितना वो सुंदर था,
वो घर जो अपना था,
आज सूना सूना है,
वो आँगन पुकारता है,
वृक्ष बुलाते है,
कि फिर सब आओ न,
धमाल मचाओ न,
वो होली के रंग आते थे,
खूब भाते थे,
दोस्तो का आना था,
संग संग खेलना था,
बारिशों में भीगने था,
सुनहरा बचपन था,
आज सब यादे है,
दूर सब रहते है,
यादो की दुनिया मे कभी आ मिलते है,
फिर अजनबी हो जाते है,
व्यस्तता में खो जाते है,
न कभो आता है,
जो बचपन जाता है,
बस यादे ही यादे है,
नैनो की बरसाते है,
कुछ का बिछड़ना ऐसा,
जो न मिल पाएंगे,
यादो की दुनिया मे,
बस दस्तक दे जाएंगे।।
©अरुणिमा बहादुर खरे, प्रयागराज, यूपी