लेखक की कलम से
सच में मेरा प्रेम यही है…
रीति यही है नीति यही है
मेरी सच्ची प्रीति यही है
प्रेम से अभिसिंचित होना ही
सच में ही अनुभूति यही है..।।
मेरे मन की चाह यही है
अरमानों की राह यही है
तुम ही हो मेरे जीवन में
सच में मेरी चाह यही है..।।
तुम ही से जगमग जीवन है
तुम ही से हैं ये मुस्कानें
तुमसे ही है प्रेम विभूषित
सच में मेरा प्रेम यही है..।।
प्रेम अलंकृत तुम से ही है
चाहत का श्रृंगार तुम्हीं से
हर अभिलाषा में तुम ही हो
सच में मन का भाव यही है..।।
रीति यही है नीति यही है
मेरी सच्ची प्रीति यही है
प्रेम से अभिसिंचित होना ही
सच में ही अनुभूति यही है..।।
सच में ही अनुभूति यही है..।।
©विजय कनौजिया, अम्बेडकर नगर, यूपी