लेखक की कलम से
आख़िरी कलाम…
तेरी जुस्तजू मुझे कब से है
मुझे कोई इसकी ख़बर नहीं
तू मिले मुझे या कि ना मिले
यूँ चुरा नज़र से नज़र नहीं
जरा सर पे मेरे तू हाथ रख
किसी और का तो असर नहीं
मैं यहाँ रहूँ या वहाँ रहूँ
तेरे दर सा कोई भी दर नही
अभी वक़्त है मुझे आ के मिल
किसी वक़्त का कोई घर नहीं
तू मेरी सदा का असर दिखा
मेरे पास आ, मेरे पास आ
जो तू आ गया तो क़रीब आ
मुझे तुमसे मिल के सबर नहीं
मैं हूँ तेरे जल्वों का मुन्तज़िर
उन्ही जल्वों से तू मुझे जला
ऐ मेरे ख़ुदा ये सलाम ले
यही आख़िरी मेरा कलाम ले.
-दिलबाग राज