लेखक की कलम से

तुम पुरुष मैं प्रकृति

तुम पुरुष मै प्रकृति, रिश्तो में गर्माहट लाते हम दोनों…

ओस की बूंदों से बुनी, कुहासे की चादर ओढ़े, दो वृक्ष जैसे हम दोनों…
पास होकर भी जड़ से अलग,किंतु एक दूसरे के सामिप्य की मधुर सुगंध फैलाते हम दोनों….

तुम पुरुष मैं प्रकृति…
साथ बहते हुए उस नदियां के दो किनारे से हम दोनों….
जो साथ रहते हुए भी अलग है ,किंतु अपनी मिठास जल में मिलाते हुए हम दोनों…

तुम पुरुष मै प्रकृति…
गगन के दो छोरों पर ,उन चमकते हुए सितारे जैसै हम दोनों…
जो फैलाते हैं उजियारा , मिटा करके तमस अपने आसमान का हम दोनों…

तुम पुरुष में प्रकृति…
क्षितिज पर मिलती ,दो रेखाओं जैसे हम दोनों…
जैसे वसुंधरा व व्योम को, एक सूत्र में बांधते हम दोनों…

तुम पुरुष मै प्रकृति…
पवन में मेघ जैसे साथ, बहते व बरसते हम दोनों…
जो अपने अथक प्रयास से, मनभावन प्रकृति का निर्माण करते हम दोनों…

तुम पुरुष में प्रकृति…
राधा कृष्ण जैसे दो होकर भी, एक ही है हम दोनों…
दो बदन एक आत्मबंधन में बंधे ,प्रेम बरसाते हम दोनों…

तुम पुरुष मै प्रकृति,रिश्तों में गर्माहट लाते हम दोनों…

©ऋतु गुप्ता, खुर्जा, बुलंदशहर, उत्तर प्रदेश

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