थोड़ा हँस लें आज…
नज़्म
यहाँ कौन सच्चा यहाँ कौन झूठा,
सभी ओर फैली अजब देख माया
दिखे जो भी सुंदर वो असली में बंदर,
ये है ब्यूटिफाई कि देखो जी माया
जिसे रूबरू तुमने कल ही था देखा
वो डीपी में लगती न कम कोई रेखा
था चेचक के धब्बों से भरपूर चेहरा
थी झुर्री भरी देखो हरसू ही जिसके
उसे हूर देखो मोबाइल बनाता
ये अनपढ़ को भी आज साहब बताता
सुनो कोई कुंठित न अब रह गया है
सभी को दमकता बदन मिल गया है
तुम्हारी उमर जो हुई साठ-सत्तर
उसे भी ये देखो जी सोलह बनाता
है गर दोस्ती ऑनलाइन तुम्हारी
बड़ी मुश्किलों से मुलाकात होगी
कि जिसको रही ढूँढती दोनों आँखें
वो निकला वहीं से न पहचान आता
जो था गौर वर्णीय फ़ोटो में अपनी
निपट हमने पाया हकीकत में काला
जिसे हम थे सोचे कि कोयल सा गाता
वो कौए को भी देखिये था रुलाता
करें बात क्या हम जी गिरगिट की बोलो
लो नेता यहाँ का सभी को हराता
जिसे वोट देकर हम आए थे घर को
उसे शाम को अन्य पार्टी में पाया
वही हम हैं देखो पढ़े ख़ुद से सारे
मगर अब तो कोचिंग ने गुरु को पढ़ाया
किताबों में लगता नहीं दिल किसी का
गयी बात है वो किसी ने कभी जो
किताबों में था फूल कोई छुपाया
है गूगल बड़ा देवता पूजें सब ही
सभी को ही उसने है ज्ञानी बनाया
न जाती न पाती नहीं भेद कोई
गरीबी अमीरी को इसने मिलाया
कभी कामवाली ने इससे ही देखो
बड़ी मालकिन को भी छोटा बनाया
कभी थे लगे लाइनों में वो लंबी
रही थी न राशन और बैकों में मंदी
मगर अब तो जीना ‘जिओ’ ही सिखाता
कभी नोट बंदी में गीला हो आटा
फटी जीन्स बिकती है महंगी यहाँ अब
पहनता नहीं जो वो पिछड़ा कहाता
नहीं कोई झुकता है पैरों पे देखो
अकड़ने से ही वो बड़ा माना जाता
नहीं भक्ति मन में मगर राम देखो
लगा नाम में वो सभी को लुभाता
खुली पोल इनकी यहाँ ऐसी अबतो
कि जेलों में ही वो भजन देखो गाता
रहा प्याज देखो गरीबों का साथी
वो भूखा सदा प्याज रोटी ही खाता
सियासत मगर प्याज ने भी लो सीखी
अमीरों से ही अब बना उसका नाता
हुआ आज हरसू ही ऊँचा है मानव
मगर ‘भवि’ हमें सिर्फ़ झुकना ही भाता
©शुचि ‘भवि’, भिलाई, छत्तीसगढ़
परिचय – नाम : शुचि क्षत्रिय लीखा, एमएससी गोल्ड मैडलिस्ट, डीपीएस दुर्ग में अध्यापन, प्रकाशित कृतियां- मेरे मन का गीत, बांहों में आकाश, सबसे अच्छा काल, ख्वाबों की खुश्बु काव्य संग्रह, आर्य कुलम की नींव, मसाफत ए ख्वाहिशात। सम्मान- शारदा साहित्य उत्तराखंड, दोहा दंगल साहिबाबाद, विश्ववाणी जबलपुर, सृजन व अन्य सम्मान। दूरदर्शन व आकाशवाणी से रचनाओं का प्रकाशन।