लेखक की कलम से

गांधी का संदेश साकार हुआ एकता परिषद के श्रम शक्ति अभियान से, पैसे के बदले अन्न देकर श्रम को किया प्रतिष्ठित …

मध्य प्रदेश सहित विभिन्न राज्यों में सैकड़ों गांवों में की गई श्रमदान की अनूठी कोशिश

 

एकता परिषद ने श्रम को प्रतिष्ठा दिलाने का अभियान चला कर गांधी के चरखे से निकलने वाले श्रम संदेश को ही नए स्वरूप में पेश किया है। परिषद ने अपनी सूझबूझ से गांवों में श्रम अभियान के जरिए जल,जंगल और जमीन के संरक्षण और संवर्धन के कार्य को अंजाम दिया है। यह अपने आप में एक अनूठी कोशिश के रूप में शुमार किया जाने लगा है। इन कार्यों से जहां लोगों को रोजगार मिले, वहीं ग्राम निर्माण के लिए ग्रामीणों में एकजुटता भी कायम हुई। कोरो ना और लॉक डाउन की वजह से बेगार हो गए श्रमिकों को व्यथा के सागर से निकाल कर एकता परिषद ने धरती पर उन्हें नई आजीविका का विकल्प दिया है।

श्रम शक्ति अभियान के तहत शिविरों, यात्राओं और श्रमदान का आयोजन कर श्रमिकों का ना केवल आजीविका दी बल्कि उनका उत्साह बढ़ाया और उनकी समझ भी विकसित की गई। मानों मौजूदा विपत्ति के समय में एक श्रमोत्सव ही मनाया गया, क्योंकि श्रम कार्य सरकारी तरीके से नहीं कराया गया बल्कि आजीविका को भी श्रमिकों की निजता के घेरे से बाहर लाकर उसे ग्राम निर्माण से जोड़ दिया। ऐसे समय में जब लोग भारी संख्या में बेरोजगार हो गए हों और तुरंत ही कोई काम धंधे के मिलने की कोई संभावना पूरी ख़तम हो गई हो,तब लोगों को अन्न मिले, इसके लिए ग्रामीणों को ऐसी आजीविका मुहैया करवाई गई जिससे उन्हें यह संतोष भी मिला कि उन्होंने देश और समाज के लिए अपनी भागीदारी भी दी।

गौरतलब है कि एकता परिषद की ओर से 27 फरवरी से पंद्रह दिनों तक देश भर में दो सौ से ज्यादा जगहों पर श्रमशक्ति अभियान का संचालन किया गया,जिसमें पांच हजार से ज्यादा स्त्री पुरुष शामिल हुए। वैसे श्रमदान के आयोजन होते रहते हैं लेकिन आजाद भारत में किसी भी जन संगठन द्वारा की गई यह पहली अनूठी कोशिश है,जिसमें हजारों की संख्या में श्रमिकों ने भाग लिया। पिछले पंद्रह दिनों में गीत, गानों और नारों की गगनभेदी गर्जना के साथ दर्जनों तालाब,कुएं और बावड़ियों का उद्धार किया गया। जल संरक्षण के लिए यह कोशिश केवल आयोजकों के लिए लाभदायक नहीं रही बल्कि श्रमिकों के गांवों की बरसों लंबित कार्य को अंजाम दिया गया। इससे उनके गांव की बड़ी समस्या का समाधान भी संभव हो सका। सचमुच में यह एक अनुकरणीय मिसाल है।

एकता परिषद अब तक आदिवासियों, दलितों, वंचितों और महिलाओं सहित अनेक जन मुद्दों को लेकर अहिंसक संघर्ष के लिए विख्यात है, लेकिन पिछले पंद्रह दिनों में रचनात्मक तरीके से गांवों के पुनर्निर्माण के लिए ग्रामीण श्रमिकों को सम्मान और आजीविका दिलाने का कार्य कर एकता परिषद ने अपनी नई पहचान भी कायम कर ली है। उल्लेखनीय है कि इस अभियान की परिकल्पना विश्वविख्यात वरिष्ठ गांधीवादी समाज कर्मी राजगोपाल पीवी ने की है। इस परिकल्पना को साकार रूप देने में एकता परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष रण सिंह परमार, सचिव रमेश शर्मा और अनीश कुमार सहित डगर शर्मा,संतोष सिंह,श्रद्धा कश्यप सहित अनेक सामाजिक कार्यकर्ताओं ने अपना योगदान दिया। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि अगर एकता परिषद का श्रम शक्ति अभियान निरंतर चलता रहेगा तो उनका यह अभियान अहिंसक अर्थव्यवस्था को मजबूत करने का आधार भी साबित होगा।

गौरतलब है कि एकता परिषद द्वारा गांव गांव में संचालित श्रम अभियान के तहत श्रम के बदले में श्रमिकों को मजदूरी बतौर पैसे का भुगतान नहीं किया गया बल्कि उन्हें खाद्य सामग्री का किट दिया गया। वेतन और मजदूरी के रूप में पैसे देने के चलन पर गांधी जी का कहना था कि किसी के श्रम या कार्य को पैसे से मत आंकिए। वह काम, जो कैसे दूसरों को मदद दे सके के रूप में आंकिए। मनुष्य के लिए कार्य करने का आकर्षण यह होना चाहिए कि उन्हें उस कार्य के लिए योग्य समझा गया।

कार्य ऐसा होना चाहिए जिससे ना केवल आजीविका मिले बल्कि कार्य करने वाले को यह भी लगे कि उन्होंने केवल कमाई नहीं की बल्कि समाज निर्माण में अपना योगदान देने का संतोष और गौरव भी हो। एकता परिषद ने अपने श्रमदान अभियानों के जरिए श्रमिकों को आजीविका के साथ ग्राम निर्माण में उन्हें भागीदार होने का अवसर देकर उन्हें अपने श्रम पर गौरव महसूस करने का अवसर दिया है। ऐसा करके एकता परिषद ने स्थानीय अहिंसक अर्थव्यवस्था को सुदृढ करने का सूत्रपात कर दिया है।

गौरतलब है कि श्रमदान के जरिए एकता परिषद ने गांवों की उन समस्याओं को समाधान ने तब्दील कर दिया जिसके किए ग्रामीण सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगा कर थक गए थे लेकिन सरकार ने कोई त्वरित पहल नहीं की थी। लोग पानी के लिए तरस रहे थे उनकी महिलाओं को कहीं दूर से पानी लाना पड़ रहा था। तालाब और बावड़ियां भी सुखी पड़ी थीं। इनके उद्धार के लिए कोई सरकारी योजना उपलब्ध नहीं थी। जल संकट से लोग त्राहिमाम कर रहे थे। लेकिन एकता परिषद ने ग्रामीणों की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए उनके बीच श्रम शक्ति अभियान चला कर उन्हें अपनी शक्ति का अहसास कराया। श्रमदान के जरिए उन्होंने जाना कि वे केवल एक मजदूर नहीं है बल्कि ग्राम निर्माण के योद्धा हैं।

 

©प्रसून लतांत

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