लेखक की कलम से

अधिकार बराबरी का 

जिन्दगी के हर रास्ते में एक लड़की मिलेगी अगर जिन्दगी जीना चहाते हो तो जीने दो उसे ,और खुश होकर तुम भी जियो ,अगर तुम खुश रहना चहाते हो तो खुशबू आनें की रास्ता खुली रहने दो अगर गटर के कीचड़ की बदबू में खुशी ढूंढते हो तो खत्म कर दो इन लड़कियों को !नोच लो उनके पंख तुम लड़कों शायद तुम्हारी माँ लड़की नही रही होगी कभी ,शायद उस पर प्यार नही बघारा होगा उसकी माँ ने पिता ने भाई ने उसको भी कुचला होगा कही गलियारे में तुम जैसे बहसी बेटे ने तुम यही सोच कर औरों की बेटी और बहन के साथ ऐसा किया होगा यही सोच होगी तुम्हारी जो अपनी माँ को अपमानित कर रहे हो तुम्हारी बहन भी शर्मारही होगी कहीं घुप्प अंधेरे में खड़े होकर, हिम्मत नही हो रही होगी तुम्हें भंवरे कहते हुये। लकीरें खीच रहीं होगी उसकी सीमा रेखा की कि मैं भी एक लड़की हूँ ।कही खड़ा होगा किसी और का भाई ,बेटा उसका भी बलात्कार करने के लिये यही सोच कर घबरा रही होगी मैं क्यों बेटी हूँ मैं क्यों बहन हूँ तुम्हारे जैसे भाई की ,क्या मेरी मा्ँ ने कोई गलती की एक बेटे को जन्म देकर लोग वारिस कहते हैं बेटे को ,बेटी को क्यों नही कहते वारिस क्या वारिस एक लड़की को अपमानित करते हैं। जो एक बेटी ही वारिस को जन्म देती है उसी का बलात्कार करते हैं। कर दो सारी लड़कियों को नापक उसमें तुम्हारे भी रिश्ते होगें ।गजब सोच है लड़को तुम्हारी हम सारी स्त्रियों को गर्व करना चाहिए कि हमारी कोख से जने हमारी कोख को लान्छित कर रहे हो कितना अच्छा लग रहा होगा उस माँ को जिसने तुम जैसे बेटे को जन्म दिया ,एक भाई और होगा बिल्कुल तुम्हारी तरह तुम्हारी माँ की कोख से जन्मा लेकिन तुमसे बिल्कुल अलग एक बहुत बडी कम्पनी में कार्यरत या सरकारी कार्यालय में एक अफसर की पोस्ट पर ,या कोई भी बडा़ इज्जतदार पर फर्क होगा तुम में और  उसमें वो दुनिया का सम्मान प्राप्त कर रहा है और तुम उसके सम्मान के साथ अपना सम्मान भी खो रहे हो चौँराहे पर गली गली में दुनिया में समाज के हार शक्स के मुँह पर तुम्हारा नाम तो होगा पर गलियों के साथ, अपमान के साथ ,अफसोस कि तुम नही जीत पाये अपनों और लड़कियों का दिल, ओहो रह गये तुम कीचड़ के कीडे क्योंकि अगर फूल के भंवर होते तो फूलों के पास होते ।
तुम्हारी जिन्दगी कितनी गंदी और छोटी सोच को अपना रहा है क्या तुम जैसे बेटों की बजह से हर माँ को अपमानित ऎसे होना पडेगा ।क्या कारण जो तुम इस मानसिकता से गुजर रहे हो ,क्या तुम्हारे संस्कार इतने ओछे हैं। जो अपनी जिन्दगी का लक्ष्य तय नही कर पा रहे हो अपने संस्कारों को खुद पैदा करो किसी के दिये संस्कार ज्यादा दृण नही होते ।
भले बन जाओ तुम भी सब की तरह पर  दुनिया में सब दो हैं। एक स्त्री एक पुरुष और कुछ नही ।

©शिखा सिंह, फर्रुखाबाद, यूपी

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