लेखक की कलम से

खिल उठी अंगनाइयांं……

सज उठीं तन्हाईयां।
खिल उठी अंगनाइयाँ।

मन मेरा लेने लगा है।
झूम कर अंगड़ाइयाँ।

सिर्फ उन से दूर होंगी।
सदियों सी तनहाइयाँ।

क्या तपिश हो धूप की जब
छा रही परछाइयां।

रोज बढ़ती जा रहीं हैं।
प्यार की रानाइयाँ।

रास्ते में इश्क़ के हैं।
सैंकड़ो कठिनाइयां।

दुनियां की परवा नहीं है।
हों भले रुसवाईयाँ।

©स्वर्णलता टंडन

परिचय- अंग्रेजी साहित्य में स्नातकोत्तर, अब तक लगभग 90 कविताएं राष्ट्रीय स्तर की पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी है। एक पुस्तक मां का आंचल और साहित्य संगम संस्थान की पत्रिका आहूति प्रकाशित। विभिन्न संस्थाओं से 35 सम्मान।

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