लेखक की कलम से
मैं वक़्त हूं……
‘ साहिल की रेत पर लिखी कोई इबारत नहीं
जो मिटाओगे मुझे
न नवोदय बरसात की
बूंदें कि हटाओगे मुझे!!—
न घरौंदा रेत पर
के गिराआओगे मुझे !!
मैं वक्त का उभरता
हुआ वो लावा हूं —
जो पिघला देता लावारिस लाशों को —- और फिसल जाता
रेत सा —-
©मीरा हिंगोरानी, नई दिल्ली