लेखक की कलम से

जिसे प्रेम करते हैं उसका दरवाजा कभी बंद नहीं होता…

एक बोध कथा

एक बार एक पुत्र अपने पिता से रूठकर घर छोड़कर दूर चला गया।

      … फिर इधर-उधर भटकता रहा, दिन बीते, महीने बीते और साल बीत गया।

एक दिन वह बीमार पड़ गया।

            अपनी झोपड़ी में अकेले पड़े-पड़े उसे अपने पिता के प्रेम की याद आई …

…कि कैसे उसके पिता उसके बीमार होने पर उसकी सेवा किया करते थे

उसे बीमारी में इतना प्रेम मिलता था कि वे स्वयं ही शीघ्र- अति- शीघ्र ठीक हो जाता था…

फिर उसे एहसास हुआ कि उसने घर छोड़कर बहुत बड़ी गलती की है,

वो रात के अंधेरे में ही घर की ओर चल निकला…

जब घर के नजदीक गया तो उसने देखा, अभी आधी रात के बाद भी दरवाजा खुला हुआ है….

अनहोनी के डर से वो तुरंत भागकर अंदर गया तो उसने पाया कि आंगन में उसके पिता लेटे हुए हैं,

उसे  देखते ही उन्होंने उसका बाहें फैलाकर स्वागत किया, पुत्र की आंखों में आंसू आ गए

उसने पिता से पूछा-

                  ये घर का दरवाजा खुला है, क्या आपको आभास था

…कि मैं आउंगा

पिता ने उत्तर दिया

अरे पगले, ये दरवाजा उस दिन से बंद ही नहीं हुआ जिस दिन से तू गया था

मैं सोचता था कि पता नहीं तू कब आ जाए और कहीं ऐसा न हो,

कि दरवाजा बंद देखकर तू वापस लौट जाए।

ठीक यही स्थिति उस परम पिता परमात्मा की है, उसने भी प्रेमवश अपने भक्तों के लिए द्वार खुले रख छोड़े हैं

….कि पता नहीं कब भटकी हुई कोई आत्मा उसकी ओर लौट आए

हमें भी आवश्यकता है …

सिर्फ इतनी कि उसके प्रेम को समझें और उसकी ओर बढ़ चलें……

©संकलन– संदीप चोपड़े, सहायक संचालक विधि प्रकोष्ठ, बिलासपुर, छत्तीसगढ़

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