लेखक की कलम से

गणतंत्र दिवस के परेड में नहीं दिखे बहादुर बच्चे, हाशिए पर डाले गए

©हेमलता म्हस्के, पुणे, महाराष्ट्र

इस बार लालकिले पर 72 वें गणतंत्र दिवस समारोह में बहादुर बच्चे नहीं दिखे। नहीं तो पिछले साठ सालों में हर साल पहले हाथी पर फिर बाद में जीप पर देश भर के बहादुर बच्चे दिखाई पड़ते थे। लोगों के लिए सेना के करतब, उनके परेड और विभिन्न राज्यों की झांकियों के साथ बहादुर बच्चों की मौजूदगी भी आकर्षण का केंद्र होती थी। पूरा देश बहादुर बच्चों की वीर गाथाओं को जानने के लिए लालायित होता था। अधिकतम पुरस्कार केवल बहादुरी दिखाने वाले बच्चों को ही दिए जाते थे। इनकी संख्या हर साल बीस से बाईस या इससे भी कहीं ज्यादा होती थी। अबकी बार केवल तीन बहादुर बच्चों को ही यह पुरस्कार दिया गया। नई पुरस्कार योजना में बहादुर बच्चे हाशिए पर धकेल दिए गए हैं। बहादुरी दिखाने वाले बच्चों में ज्यादातर गरीब घरों के बच्चे भी शामिल होते थे। अब उनके लिए संभावनाएं और अवसर पहले से बहुत कम हो गए।
इस बार केंद्र सरकार ने बाल पुरस्कार का नाम और स्वरूप ही पूरी बदल दिया है। अब इस पुरस्कार का नाम प्रधानमंत्री राष्ट्रीय बाल पुरस्कार हो गया है। अबकी बार 21 राज्यों के 32 बच्चों को प्रधानमंत्री राष्ट्रीय बाल पुरस्कार दिया गया है लेकिन पहले की तरह दिल्ली बुला कर उन्हें पुरस्कृत नहीं किया गया। महिला एवं बाल कल्याण मंत्रालय की निदेशक के मुताबिक सभी पुरस्कृत बच्चों को पुरस्कार की एक लाख रुपए की राशि उनके बैंक खातों में भेज दिए गए हैं और प्रशस्ति पत्र उनके घरों पर भेज दिए गए हैं। केंद्रीय महिला एवं बाल कल्याण मंत्रालय की प्रधानमंत्री राष्ट्रीय बाल पुरस्कार योजना में अब केवल बहादुरी दिखाने वाले बच्चे ही शामिल नहीं हैं। इनके अलावा इस बार 32 पुरस्कारों में से कला और संस्कृति के क्षेत्र में 7, नवाचार के लिए 9 ज्ञानार्जन के लिए 5, खेल के लिए 7, बहादुरी के लिए 3 और समाज सेवा के लिए 1 बच्चे पुरस्कृत किए गए हैं।
इसके पहले अधिकतम पुरस्कार से केवल बहादुरी दिखाने वाले बच्चे ही गणतंत्र दिवस पर पुरस्कृत किए जाते थे। खासकर वैसे बच्चे, जिन्होंने बहादुरी के कोई करामात दिखाए हो। जैसे किसी ने गहरे नहर में गिरी स्कूल बस के डूबते बच्चे को बचाया तो किसी ने अपनी 11 महीने की बहन को ले जा रहे आवारा कुत्तों से बचाने के लिए जान की बाजी लगा दी। या किसी ने पानी की टंकी में गिरे अपने साथी को बचाने के लिए अपनी जान दे दी। किसी ने आग लगे घर में घुस कर तीन बच्चों को बचाया तो किसी ने अपनी लाज बचाने में अपनी जान दे दी। असल में बहादुर बच्चे को पुरस्कृत करने की योजना की प्रेरणा एक बहादुर बच्चे से ही देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को हुई थी। एक बार नेहरू 2 अक्टूबर 1957 में लालकिले पर गांधी जयंती कार्यक्रम में कोई प्रदर्शन देख रहे थे। तभी प्रदर्शन स्थल पर आग लगी। उस दौरान आनन फानन में हरिश्चंद्र मेहरा नाम के किसी बच्चे ने चाकू से शामियाने को फ़ाड़ कर बाहर निकलने की जगह बनाई तो शामियाने में फंसे हजारों लोगों की जान बच गई। नेहरू इस घटना से बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने अधिकारियों से हर साल बहादुर बच्चों को पुरस्कृत करने के लिए कोई संस्था शुरू करने कहा। उनकी पहल पर अगले साल 1958 से बहादुर बच्चों को पुरस्कृत करने की परंपरा की शुरुआत हुई। बहादुरी के लिए सबसे पहले बच्चे के रूप में हरिश्चंद्र मेहरा को ही पुरस्कृत किया गया था।
इस बार बहादुरी के लिए उत्तर प्रदेश के बाराबंकी के कुंवर दिव्यांशु सिंह को अपनी बहन को हमलावर सांढ से बचाने के लिए दिखाई गई हिम्मत के लिए प्रधानमंत्री राष्ट्रीय बाल पुरस्कार दिया गया। इसी तरह लॉक डाउन में अपने पिता को हरियाणा से साईकिल चलाकर बिहार के दरभंगा पहुंचाने के लिए ज्योति कुमारी को दिया गया है। इनके अलावा सबसे कम उम्र की तमिलनाडु के चेंगल पट्टू जिले की प्रसिद्धि सिंह को समाज सेवा के लिए यह पुरस्कार दिया गया है। सात साल की प्रसिद्धि सिंह ने पक्षियों खासकर गिलहरियों के लिए 8 फलों वाले 9 हजार से ज्यादा पौधे लगाए और देश भर में 8 हजा इको योद्धाओं की सेना बनाई हैं। प्रसिद्धि सिंह बीस राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सेमिनारों का भी आयोजन कर चुकी हैं। नागपुर के श्री नम मौजेश अग्रवाल,कर्नाटक के राकेश कृष्ण,लुधियाना की नाम्या जोशी,बेंगलुरु के वीर कश्यप, जम्मू के हरमन जोत सिंह,नोएडा के चिराग भंसाली को, सिक्किम के आयुष रंजन और जलगांव के अर्चित राहुल पाटील आदि बच्चों को तकनॉलाजी के क्षेत्र में नवाचार के लिए पुरस्कृत किया गया है। झारखंड की सविता कुमारी, बाल गोताखोर कुमारी पलक शर्मा और उत्तर प्रदेश के मो राफे को खेल के लिए और मध्य प्रदेश के अनुज जैन , कोटा राजस्थान के आनंद, पुणे के सोनित sisolksr और ओडिशा के अन्वेश शुभम को ज्ञानार्जन के लिए प्रधानमंत्री राष्ट्रीय बाल पुरस्कार दिया गया है। लखनऊ के व्योम आहूजा को संगीत, खेल, ज्ञान और विज्ञान के क्षेत्र में पचास से अधिक पुरस्कार जितने के लिए और कला संस्कृति के लिए 200 से ज्यादा पुरस्कार जितने के लिए उत्तराखंड के अनुराग रमोला को पुरस्कृत किया गया है।

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