लेखक की कलम से

प्रेम की अनुभूति…

हवा का एक झोंका आया
और धीरे से गुदगुदा गया
दे गया यादों के अनगिनत रंग
वासंती हवा का बहना
साथ लिए माटी की ख़ुशबू
बारिश की फुहार जैसे
छिड़काव हो गया हो
हर तरफ़ मिट्टी कुछ बैठ गई है
सूरज अपने लाव लश्कर के साथ
मानो आज़माना चाहता हो
इस बदली के मौसम को
मोर ने सोचा थोड़ा थिरक लें
ना जाने कब धूप तीखी हो जाए
और इन सब के बीच …..
तुम्हारा आगमन मानो
प्रकृति झंकृत हो उठी हों
दिल आपा खो धड़कने लगा
समय मानो ठहर गया हो
ये प्रेम की ही अनुभूति है शायद…….

©ऋचा सिन्हा, नवी मुंबई, महाराष्ट्र

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