लेखक की कलम से

हिंदुस्तान……

गण के लिए ही गण के द्वारा गणतन्त्र है,
देश-भक्तों की शहादत का गणतन्त्र है।

रोजी रोटी के नाम पे वोट बिक रहे यहाँ,
फिर भी गरीबी,बेकारी कम क्यो न है।

हर रोज नये कानून बन रहे यहाँ,
फिर भी यहाँ पर बेटियाँ महफूज क्यों न है।

शिक्षा,स्वास्थ्य,पानी भी बिकने लगा यहाँ,
आपा-धापी,लूट है चैन क्यों न है।

आम आदमी की जरूरतें एक है यहाँ,
लहू का रंग एक है तो प्यार क्यों न है।

सविधान में अधिकार है सबके लिए यहाँ,
उनको लेने देने मे समता क्यो न है।

©झरना माथुर, देहरादून, उत्तराखंड

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