लेखक की कलम से

माँ शारदे छेड़ो तुम वीणा पर तान …

 

माँ शारदे छेड़ो तुम सुंदर सा अपने कर वीणा पर तान।

मानव मन में सद्भाव जगा दो छेड़ कर वीणा पर तान ।।

 

श्वेत और धवल वसन सा उजयारा तुम जग कर दो।

जन जन के कलुसित मन को श्वेत और धवल कर दो।।

 

हंस वाहिनी द्रुत गति से मानव के संकट हर लो ।

आपसी सद्भाव जगाकर उसमे नया जीवन भर दो।।

 

कर के स्फटिक माला से मानव मन में शान्ति दो।

मानव मन के विचलित भावों को इसे फेर शांति दो।।

 

कर पोथी को वांचकर ज्ञान सुधा को वर्षा दो।

मानव मन के अन्धकार को ज्ञान का प्रकाश भर दो।

 

हस्त पुष्प के उस सुगंध को जग के कण कण में भर दो।

समाज में व्याप्त दुर्गंध को हस्त पुष्प से सुगंधित कर दो।।

 

माँ शारदे विद्या की देवी लोगों में भर दो ज्ञान प्रकाश।

तेरी ही रचना में माता फिर होगी खुशी संचार।।

 

 

©कमलेश झा, शिवदुर्गा विहार फरीदाबाद

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