लेखक की कलम से
दिखावट …
हर अक्श के उपर एक चेहरा लगाए हैं
दिखावटी संसार में खुद को सजाए बैठे हैं
हंसते हैं दिखावट के लिए
पहनते हैं दिखावट के लिए
आंखों से आंसू भी बहते हैं दिखावट के लिए
सिर झुकाकर प्यार के दो बोल भी होते हैं दिखावटी
ख्वाबों को सच करने की होड़ होती है दिखावटी
नाराज़गी भी दिखावटी
मोहब्बत भी दिखावटी
भलाई का मुखौटा पहने
कुछ लोग हमारे जीवन में होते हैं दिखावटी
जब तक दिखावट के लिए हो अपनापन
गति जीवन की बन जाएगी दिखावटी
न समझने की चाहत
न समझने की महौलत
दोस्त भी कभी बन जाते दिखावट के लिए
दहलीज पर अपना हक़ जामाए खड़े लोग भी होते दिखावट के लिए
नज़रों के धोखे से बाहर निकलना होगा
हर किसी के चेहरे से वाकिफ होना होगा
दिखावट के लिए नहीं मानवता के लिए जीना होगा।।
©डॉ. जानकी झा, कटक, ओडिशा