मानव गढ़लेंगे पुनः इतिहास …
बून्द बारिश से किसी ने
क्या लपट उठते देखा है ?
क्या पिघलती मोम से पत्थर शिला
बनते किसी ने देखा है??
या नदी के उस धारा को क्या
उल्टा किसी ने बहते देखा है ?
या सागर के उस मौज को क्या
किसी से डरते देखा है ??
क्या गरज कर मेमने को किसी ने
शेर पर दहाड़ते देखा है ?
क्या भिगीबिल्ली को किसी ने
शेरनी पर गुर्राते देखा है ??
क्या कर्ज़ उतारते किसी ने अन्य
हरिश्चन्द्र को डोम घर विकते देखा है?
या किसी और भीष्म को राष्ट्र रक्षा
में तिल तिल जलते देखा है ??
मेघ का गर्जन डराता और
दिग्भ्रमित करता वो तिमिरतोम।
अन्तर्मन के उस उल्लास में
अवसाद भरता वो तिमिरतोम।।
अंधकार के उस अँधियारे में
जगमग है वो चंद्रप्रकाश।
अरुण छटा की धवल किरण
लेकर आएंगे नव प्रकाश।।
सीना चीर उस शैल शिखर का
जब फिर निकालेगी वो पवित्र धार।
मानव मन के कलुषित विचार को
धोकर जाएगी वो पवित्र धार।।
फिर मानव मन मे नव अंकुर निकलेंगे
द्वेष का करके परित्याग।
नव ऊर्जा एकत्रित कर मानव
गढलेंगे एक नया इतिहास।।
©कमलेश झा, फरीदाबाद