लेखक की कलम से

” यह तो धर्म नहीं “

आखिर जीने किसे देना है ?

हिन्दू न मुसलमान

पारसी न क्रिस्तान

धर्म की नैया कहाँ

किसी को भी खेना है

आखिर जीने किसे देना है ?

 

न हरा न ही भगवा

उजले पर भी फतवा

बस लाल धरा भाए

इनका रक्त ही चबेना है

आखिर जीने किसे देना है ?

 

फ्रांस या अफगानिस्तान

अमेरिका या हिंदुस्तान

बचने ना पाए सब

शमशान बना देना है

आखिर जीने किसे देना है ?

 

रक्तबीज दानव ये

हैं ही नहीं मानव ये

आओ हे काली

तेरा खप्पर है खाली

खप्पर को दानवों के

रक्त से भर लेना है !

जीवन जीने तो देना है !

-अमृता शर्मा, कार्य-गृहिणी, निवास- बोकारो इस्पात नगर, झारखण्ड

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