लेखक की कलम से
दोहरा चरित्र …
व्यंग्य रचना..
सुलग रही थी कहीं चिंगारी और वो यूं हवा देने आ गए,
बात वतन की गरिमा की थी मुफ़्त में राजनीति दिखा गए।
भोली-भाली जनता के सम्मुख बस आंसू बहा कर फिर,
चुनाव में अपने वोट बढ़ाने को शातिर नेता हाथ आज़मा गए।
मुश्किल वक्त में भी देखो कैसे मौके की तालाश में निकले हैं,
खुद चाहे कुछ न करें मगर जनता को ट्विटर में उल्झा गए।
अब भी वक्त है कुछ और नहीं इंसानियत तो दिखला दें कहीं,
अपना दोहरा चेहरा छुपाने की खातिर सरकार को दोषी बता गए।
मतभेद रखो कोई बात नहीं पर मनभेद को इतना बढ़ाओ मत ,
वतन सभी का है स्वार्थ के लिए क्यों सब पे उंगली उठा गए।
©कामनी गुप्ता, जम्मू