लेखक की कलम से

छोटा सा नाम है …

हस्ती मेरी ज़रा सी है छोटा सा नाम है

मोती का भी मेरे लिए कौड़ी का दाम है

 

ख्वाहिश नहीं  रही है बड़ी मंज़िलें  मिले

दिल छोटी छोटी बात का ख़ुद ही ग़ुलाम है

 

हंसती रहूँ तो चमकती सी हो सुब्ह नयी

थक कर जो बैठ जाऊं तो हो जाती शाम है

 

रहती हूं खुश खुदी  में नहीं कोई ग़म मुझे

सहने को इस जहाँ में ही दुख भी तमाम है

 

सच बात ही करूं बयां डरती नहीं कभी

सोचूँ न किसका घर किसका निज़ाम है

 

 

©डॉ रश्मि दुबे, गाजियाबाद, उत्तरप्रदेश        

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