अईसन काबर होथे …
अइसन काबर होथे संगी,
अइसन काबर होथे जी।
ढोंगी मन के पूजा होथे,
धर्मात्मा काबर रोथे जी।।
अ अनार के पढ़ईया गुरु ल,
सब झन ह भूल जाथे ।
ट्यूशनखोर मनखे के काबर,
पांव ह आघू पूजाथे।।
कम्पाउंडर ह सेवा बजाथे,
डॉक्टर के नाम होथे जी–
नेव के ईंटा कोनो नइ देखे,
टाइल्स के गुण ल गाथे।
गौ माता के नइ हे पूछंता,
घर घर म कुकुर बन्धाथे।।
फूल के संग म कोनों ह,
काबर कांटा ल बोथे जी—–
दुःख पाथे सतवंतिन नारी,
कुलक्षिणी ह मजा उड़ाथे।
घर के पत ल कोनो नई राखे,
गांव- गली म बगराथे।।
सरवन बेटा के दुःख-पीरा म,
दाई -ददा ह काबर रोथे जी–
दरूहा ,मंदहा के होथे पहुनाई,
मस्ती म रात पहाथे।
सिधवा मनखे के कोन पुछैया,
दार -भात बर तरसाथे।।
अन्नदाता किसान ह देखव,
अधपेटहा काबर सोथे जी—
कुल गोत्र के नई हे ठिकाना,
सब सरमेट्टा होवत हे।
घर के मर्यादा ह देखव,
बइठका म नीलाम होवत हे।।
ममहाती दुबराज धान म,
काबर करगा ह होथे जी—-
राजा सोसन भर सोवत हे,
परपंची नियाव होवत हे।
कतेक के पीरा ल बतावंव,
बिन पानी डोंगा खोवत हे।।
सुम्मत के रद्दा ल छोड़ के,
नफरत के बिजहा काबर बोथे जी—-
©श्रवण कुमार साहू, राजिम, गरियाबंद (छग)