लेखक की कलम से
उगता सूरज और तुम …
सूर्योदय मेरा पहला प्यार है
पर तुम्हारी बिलौरी आंखें
मुझे ज़्यादा अज़ीज है
उगते सूरज की रश्मियों सी
तुम्हारी आंखें अमूर्त रुप है
भोर की लाली का
इठलाती अलसाती कहकशां सी
तुम्हारी देहलालित्य की
कांति के आगे कायनात का
हर नूर बे-नूर है
सप्तपर्णी सी सुगंधित सांसे
जब छूकर गुज़रती है
मेरे एहसासों को
कायनात के सारे सुख मेरे करीब
महसूस होते हैं
हंसी के धनी तुम्हारे होंठों पर ठहरा
हल्का भूरा तील कुसूरवार है
इस नादान दिल को बहकाने में
झुका ले पलकें ज़ालिम
अब की कोई खता ना कर लूं
हद ए मोहब्बत में रहने दे
दीवाने दिल को रोक ले
बहकने से
दिलकश अदाओं को यूं ना बिखरने दे
अपने जलवों को थोड़ा सा टोक दे।
©भावना जे. ठाकर