लेखक की कलम से
बसंत …
पुष्प भरे पराग से
हिय भी करे हिलोर
पीत वसन धरती ओढ़े
कोयल करती शोर
मधुरस अरु मकरंद से
पुष्प पल्लवित आज
रूप सरोवर देखकर
राधा करती लाज
अंग अंग है आनंदित
हर्ष हुआ चँहु ओर
प्रणय करे मधुकर जहां
हृदय चला उस ओर
नयनों में ले नेह को
आया है चितचोर
हुआ हृदय है बावरा
कहिं भ्रमर कहिं मोर
धूप सुनहरी भी लगे
नहीं हर्ष का अंत
कैसा सखि आनंद है
कैसा यह बसंत …
©डॉ रश्मि दुबे, गाजियाबाद, उत्तरप्रदेश