लेखक की कलम से
सरस्वती वन्दना….
हे हस्त विणा धर सरस्वती
तव शुभ्र छवि नित नैंन धरूँ
धवल वस्त्र शीत संदल धुली
कर जोड़ी करूँ तुझ वन्दना
हंसवाहिनी शुभ वरदायिनी
साँस सुधि सुगंध सुरभित
करूँ चरणे नयन नीराभिषेक
अक्षर हीन मुझ व्योम भर दे
ध्वनित कर शब्दों की सरगम
जीवन सुफ़ल करूँ शक्ति दे
कंटकीत मुझ अश्रु मिटे माँ
उर हसित विधा लौ जले
हस्त मम असंख्य तुलिका
अनगिनत रचना फूल खिले
मन की दृग वीरान भाषे
शब्द घट की गगरी छलके
सृजन शक्ति शुभ दीप जले
साहित्य धरोहर रूदन करती
रजत शंख का स्वन हो शारदे
कर कृपा थकी बनूँ ऋणी तव
शिथिल बुद्धि संचार भरो उर
ग्रंथकार, सुखनवर, कवि बन
स्वरचित मौलिकता बद्ध रखूँ
तत्सम एक नव निर्माण करूँ
ज्ञान सुधा बरसा मुझ सर पर
साहित्य संसार में यज्ञ करूँ।।
©भावना जे. ठाकर