लेखक की कलम से

तुलसी दल….

पहले छत गिरी
या नींव धंसी

पता नहीं,
सोचा नहीं या
हमेशा की तरह
कर दिया अनदेखा इस बार भी

झूठे सच की दीवारें
गिर रही थी एक एक करके

देह संभाली तो
अटक गया मन किसी
आंचल में,
मन निकाला तो
धड़कने मद्धम हो
छूटते हाथों पर
अपनी ढीली होती पकड़
और एक आखिरी हिचकी
को साधने की कोशिश में
धाराशायी हो हृदय करने
लगा तौबा

कि बस अब बहुत हुआ
चाहिए दो बूंद जल
और केवल तुलसी दल…..

 

©सीमा गुप्ता, पंचकूला, हरियाणा          

Back to top button