लेखक की कलम से

कहीं नहीं जाऊंगी ….

तुम्हारे , हंसते चमकते चेहरे गोल कटोरी सी पनीली आंखों में तुम्हारे बचपन की सम्मोहित मुस्कान के जैसे तुम्हारे गले में बाहें डाल छाती से चिपकाए हुए ,आंखों में तैरते पानी के जैसे, तुम्हारे भविष्य में तुम्हारे बनाएं घोसले में उस चिड़िया की तरह रहूंगी जिस के बच्चे उड़ने से डरते रहे मगर जब उड़ना सीख गए तो वो निश्चिंत हो गई।

 

मैं तुम्हें संभल संभल कर चलने की हिदायत देती हूं क्योंकि घर द्वार की देहरी के बाहर की दुनिया में हर संभव तुम्हारे शब्दों के कई कई अर्थ लिए जाएंगे, तुम जो कहना चाहोगी, समझाना चाहोगी वो सब नकार दिया जाएगा मगर तुम बेचैन मत होना और हाँ ….अगर कभी भयभीत हुई भी तो अपने मनोभावों को छिपा लेना। अडिग और निडर हो अंधेरी गलियों में कदम रखने से डरना मत। |

 

तुम्हारी प्यास महज आसमान को छूने की ना हो समझने की भी हो| जीवन एक सफर है, इस सफर में दुख सुख संग चलेंगे, दुखों को भाप बनाकर बादलों में बदल ,वर्षा की आस निरंतर लगाए रखना। |

 

तुम अपनी प्रतिमा स्वयं बनाना और उसे स्वयं ही तराशना भी| किसी और के हाथ तुम्हें तराशते वक्त अपना गुलाम बना सकते हैं|

तुम छाया तलाशने में वक्त ज़ाया मत करना। जितनी सह सको धूप उससे भी अधिक गरम भट्टी को तापने की आदत अपनी देह को होने देना|

 

भांप लेना पीठ के पीछे लाल डोरे सी घूमती आंखों को, महसूस कर लेना गलत छुअन को …..तुम्हें पता होना चाहिए क्या करना है ……तुम केवल अपनी आत्मा की आवाज सुनना। ||

 

मेरा कहीं जाना संभव ही नहीं है, तुम निश्चिंत और बेफिक्र अपने सपनों को उड़ान भरने देना और अर्धनारीश्वर से सती के शिव को अपने भीतर महसूस करते रहना …….

 

मैं तुम्हें कहती हूँ और

कहती रहूंगी

 

प्यार करते रहना क्योंकि

प्यार करते रहना चाहिए

विश्वास करते रहना क्योंकि

विश्वास करते रहना चाहिए

पंख खोल लेना डरना मत

 

उड़ना आसमान में मगर

जमीन को देखते रहना क्योंकि

ऐसा करते रहना चाहिए

जीवन सीधा सरल है

जटिल प्रश्न मत बनाना

 

तन से मन से

होना मजबूत…….

 

©सीमा गुप्ता, पंचकूला, हरियाणा

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