लेखक की कलम से

आखिर ऐसा क्यों …

जिनके पास भरा पूरा परिवार होता है,

उनसे लोग अक्सर यह कहते हैं,

जरूरत पड़े तो हमें याद करना।

पर जो अकेला होता है,

उनकी सुध कोई लेता क्यों नहीं ?

आखिर ऐसा क्यों???

 

जिनके पास अन्न धन का,

 भंडार भरा होता है,

हम उन्हीं से ही पूछते हैं,

किसी चीज की जरूरत हो तो बताइएगा।।

किंतु पड़ोस के किसी गरीब के घर,

हम जाकर यह कभी नहीं देखते,

कि आज उनके घर में,

चूल्हा जला भी है या नहीं ?

आखिर ऐसा क्यों???

किसी रईस के घर के शादी में,

हम अपने औकात से भी ज्यादा,

गिफ्ट या दहेज दे आते हैं,

सिर्फ यह सोचकर कि,

 लोग क्या कहेंगे। ?

लेकिन किसी गरीब की बेटी के घर,

 हम अपना हाथ खींच लेते हैं,

शायद यह सोचकर,

आखिर वो क्या कह सकेंगे। ?

आखिर ऐसा क्यों???

जिनका पेट भरा हुआ है,

हम उनसे ही पूछते हैं,

क्यों खाना हो गया??

पर उसी खाने के लिए भीख मांग रहे,

किसी अनाथ, बेसहारा को हम,

एक रोटी का टुकड़ा देना या रुपया देना,

भी मुनासिब नहीं समझते।।

आखिर ऐसा क्यों????

आदमी जब तक जीता है,

अपने ही लोग उनके मरने की,

रात-दिन दुवाएँ माँगते हैं।

लेकिन मरने के बाद वही लोग,

शोक सभा में आँसू बहाते हैं।

आखिर ऐसा क्यों???

यहां जिंदा व्यक्ति की,

एक छोटी सी आवश्यकता ,

पूरी नहीं हो पाती परंतु,

मौत की दहलीज पर खड़े ,

व्यक्ति से अंतिम इच्छा पूछी जाती है।

आखिर ऐसा क्यों????

यह वर्तमान सभ्यता का

कौन सा विद्रूप रूप है ?

जहां हर शख्स मुखौटा,

लगाकर जी रहा है।

दूसरों को जहर देकर,

स्वयं अमृत पी रहा है।।

क्या यह गिरती मानवता की ,

कोई अनसुलझी कहानी है।

या फिर मानव में दानव के,

अस्तित्व की कोई निशानी है।।

 यक्ष प्रश्न अभी भी कायम है,

तरसक में तीर ज्यों???

आखिर ऐसा क्यों???

आखिर ऐसा क्यों???

©श्रवण कुमार साहू, राजिम, गरियाबंद (छग)

Back to top button