लेखक की कलम से
कड़वी बात ….
सामरथ को दोष न दीजै, वक़्त उसी का होय।
जो जन इनसे बैर करे, वह तो जीवन भर रोय।।
चाटुकारों से घिरा हुआ, राजा भी अंधा होय।
चिकनी चुपड़ी बात में, खुद का धरम है खोय।।
कामी क्रोधी और कपटी, देखो तो संत कहाय।
पर उपदेश खूब करै, आप ही मल में नहाय ।।
झूठ फरेब की दुनियाँ में, दुष्टों की जय- जयकार।
सज्जन ठोकर खात है, मानों जीवन हो बेकार।।
हीरे की कहीं परख नहीं, काँच को नग में जड़ाय।
अपना चरित्र न देखे, दूसरों को आईना दिखाय।।
कलयुग के प्रभाव से, यहाँ कोई भी बच न पाय।
सत्य धर्म भूखा मरै, सब पाप को शीश नवाय।।
जीवन में सुख पाना है तो, ये प्रखर तू चुप रह।
चुप बराबर सुख नहीं, यह बात सभी से कह।।
कड़वी बात न बोलिये, हजम किसी से न होय।
मीठी मीठी बोलिये, चाहे रोग शक्कर का होय।।
©श्रवण कुमार साहू, राजिम, गरियाबंद (छग)