लेखक की कलम से

सांस बनकर भीतर उतरता मेरा पड़ोसी नीम……..

प्रेम शर्मा 

आज पूरे 6 महीने हो गए मुझे नए घर में शिफ्ट हुए जिस दिन पहली बार इस घर में आई, तब घर के ठीक सामने जमीन पर कब्जा किए हुए एक विशालकाय नीम के पेड़ पर नजर गई। मैंने मन ही मन सोचा कि नीम की जगह यहां पलाश या आम का पेड़ होता तो कितना अच्छा होता!!!
मेरे दिन की शुरुआत एक कप चाय और न्यूजपेपर से होती है और फिर स्वच्छता अभियान का हिस्सा बनते हुए घर के बाहर की सफाई करती हूं। नीम की पत्तियों और बीजों से बहुत सारा कचरा फैल जाता है। घर अंदर से कैसा भी हो, बाहर से चकाचक रखना जरूरी है, इमेज का सवाल है।
दिन अच्छे से दिन निकल ही रहे थे कि कोरोना आ गया। आखिर किसे पता था कि सारी दुनिया कोरोना के चक्रव्यू में फंस कर रह जाएगी। महामारी पर काबू पाने के लिए प्रशासन ने लॉकडाउन कर दिया। घर-बाहर के कामों में घटती रहती थी मैं, पहले लगा कि चलो अब जरा मिल गया, पर इंसानी फितरत है ना कि जो मिल जाता है वह हमें कब चाहिए होता है!! हमें तो वही चाहिए जो पास नहीं है। एक महीना हो गया लॉकडाउन का, परेशानियां बढ़ थीं।
उस रोज में अपना चाय का कप लिए बाहर बरामदे में आ गई थी। चाय पीते-पीते नीम के पेड़ पर नजर गई, तो ऐसा लगा कि वो भी मुझे ताक रहा था। मुझसे बातचीत करने के मूड में था या शायद आंखें दिखा रहा था।
उसने बोलना शुरू किया- क्या हुआ? लॉकडाउन से परेशान हो गई तुम? तुम कहीं जा नहीं सकती और कोई तुम्हारे पास आ नहीं रहा। वीकेंड की पार्टियां भी बंद हैं। एक ही जगह रहने से इतनी जल्दी परेशान हो गई हो तुम। हमें देखो, हम पेड़ों का हमेशा ही लॉकडाउन चलता है। थोड़ी-सी जमीन पर खड़ा हूं, पर इस समय भी सुबह से लेकर रात तक व्यस्त हूं।
उसकी बातें सुनते-सुनते मैं चाय के घूंट पीती रही। वो अपनी कहानी सुनाता रहा।
बोला- सुबह पहले से मेरा काम शुरू हो जाता है। सुबह पांच बजे एक कोयल का जोड़ा आकर बैठता है मुझ पर और गाता रहता है। तुमने तो सुना ही होगा ना उनका गाना!! मुझे तो सुनना ही पड़ता है। उनका गाना थमता नहीं है कि छोटी-छोटी गौरैया आकर बैठ जाती हैं। मेरी टहनियों पर मचलती रहती हैं। पंछियों का आना-जाना दिनभर लगा रहता है।
तुम उन्हें जानती हो? वो बुजुर्ग जोड़ा… मिस्टर एंड मिसेज गुप्ता जी… गली के चार-पांच चक्कर लगाते हैं वो, जब भी थक जाते हैं उन्हें अपनी छांव देनी होती हैं। यही तो आकर सुस्ताते हैं वे। पति को मेरी टहनी चाहिए होती है, दातुन के लिए और पत्नी मेरी पत्तियां तोड़कर खाती हैं, शायद कोई बीमारी है उन्हें।
मेरे तने पर, मेरी डालियों पर एक पूरी की पूरी बस्ती बसी हुई है, लेकिन कोई भी इन पर अपना हक नहीं जमाता। तोते का घर तो तुमने देखा ही था, अब उनके खाली घर पर बुलबुल ने अपना कब्जा जमा लिया है।
भरी दोपहरी में भी चैन नहीं मिलता मुझे। गिलहरियां एक-दूसरे के आगे-पीछे भागती रहती हैं, इस डाल से उस डाल पर ची ची की आवाज तुम भी तो सुनती हो!!
और वो काली जिसे तुम मोहल्ले वालों ने नाम दे रखा है, वो ब्लैक डॉग। उसे भी तो चैन मेरी ही छांव में आकर ही मिलता है। छांव मेरी और रखवाली तुम्हारे घर की!!
लगा कि ऐसा कहते हुए हंस दिया वो। मैं भी मुस्कुरा दी।
बहुत मीठा-मीठा बोले जा रहा था कड़वा नीम। बोला- तुम जिनसे डरती हो ना!! वो छोटे-छोटे चमगादड़!! वो भी तो रात को मेरी टहनी पर आकर लटक जाते हैं। और हां, एक बात तो बताओ जरा? तुम क्यों सिर्फ जाली का दरवाजा बंद करती हो अपने कमरे का रात भर? इसलिए न कि मेरी ठंडक लिए हवा तुम तक चली आए!! लॉकडाउन में रहता हूं, पर फिर भी दूर तक चला जाता हूं, ऑक्सीजन बनकर, ठंडक बनकर, छांव बनकर।
सच में, अब जबकि लंबा लॉकडाउन खत्म हो गया, संभलकर ही सही, हमने बाहर निकलना शुरू कर दिया है। मैं सोचती हूं कि बाहर निकलकर भी तो मैं इतना कुछ दे नहीं पाती सबको, जो नीम खड़े-खड़े दे रहा है। अब मैं उससे रोज बाती करती हूं, संगत का कुछ असर तो आए मुझ पर।

 

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