लेखक की कलम से

आज की ग़ज़ल …

 

कहाँ क़ाबिल यक़ीं के हैं, बची इकरार की बातें

क्यूँ नाहक कर रहे हो, पत्थरों से प्यार की बातें

 

बदलते वक़्त के शायर से शायद सुन न पाओगे

कभी ज़ुल्फ़ों पे चर्चाएं, कभी रूखसार की बातें

 

अभी भी घूमती फिरती है सड़कों पे जवां पीढ़ी

मगर संसद तलक होती हैं बस, रूज़गार की बातें

 

ख़बर आती नहीं हम तक, कहीं से भी सही कोई

वो चाहे दूरदर्शन हो, या फिर अख़बार की बातें

 

बदलते जा रहे यक़दम, क्यूं पैमाने मोहब्बत के

कहानी जैसी लगती हैं, विसाले- यार की बातें

 

जहां पर बोलबाला हो, फ़क़त मक्कार लोगों का

सुनी जायेंगी कैसे उस जगह, हक़दार की बातें

 

जलूसों और जलसों में, अमन की बात जो कहते

घरों में बैठ कर करते, वही हथियार की बातें

 

मैं लेकर हौसला उतरा हूं, इस गहरे समन्दर में

ये करना और जाकर तुम, कहीं मझधार की बातें

©कृष्ण बक्षी

Back to top button