लेखक की कलम से

मिलन……

जो हवा एक बार चली थी,
बार बार चले।
एक बार ही सही, पहले की तरह
हम फिर से मिलें।
खुद – ब – खुद जो बन गए
दूर हों, वो शिकवे गिले।
कितने हमने बहाए, तुमने पोंछे नहीं
वो अश्क गिनें।
बेफिक्र शुरू हो जाए यूंही,
मुहब्बत के सिलसिले।

©अर्चना त्यागी, जोधपुर

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