लेखक की कलम से

खुशी…

आने ख़ुशी ज़ाहिर….कर नहीं पाया,

बस ज़िंदा हूँ…….खुशी से मर नहीं पाया..

पहली बारिश का होना इज़हार ही था शायद..

जो तेरी गलियों ने किया….मैं वो कर नहीं पाया…

भटक गया तेरे इश्क़ के गलियों में,

दिलों के घरौंदे में मैं ………रह नहीं पाया..

बस देखता ही रह गया…यूँ बे-बाक़ी भरी नज़रो से,

तेरे सामने आकर भी कुछ …….कह नहीं पाया…

एक छुअन जो मेरे मन से होकर गुज़री,

चंचलता सा मन ,मैं उससे भी ज़िद……कर नहीं पाया…

पास होकर भी दूर ही हो शायद,

दिल ये पागल.……….. समझ नहीं पाया…

तेरी मासूमियत ने मेरे कानों में हौले से आवाज़ दी…

मेरे ज़हन के किसी कोने में था तेरे इश्क़ का शोर….मैं सुन नहीं पाया..

हवायों की चाल बदल सी गयी,

तेरी बहती यादों से मैं मिल नहीं पाया…

एक फूल कलियों सा दिल में खिला…

शायद,

बेख़ौफ़ सा इश्क़ मेरा खिल नहीं पाया…

तेरी इश्क़ से भला प्यार क्यूँ न करूँ..

जो तुमने किया वो मैं कर नहीं पाया…

मिलाकर कदम यूँ आपसे ,बेबाक़ी से मैं चल नहीं पाया..

पहली बारिश का होना इज़हार ही था शायद,

जो तेरी गलियों ने किया,मैं वो कर नहीं पाया….

@इंजी. गौरव शुक्ला, इलाहाबाद, यूपी

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