आज फिर नया साल आ गया…
लो…आज फिर नया साल आ गया
मन में नवीन उमंगें हैं, उठ रहीं हृदय में तरंगें हैं,
रह गईं अधूरी जो ख़्वाहिशें है, करो पूर्ण, स्वप्न दिखला गया,
लो…आज फिर नया साल आ गया
जो बीता धन्यवाद उसे, उसने भी बहुत सिखलाया है, नूतन जो उसका स्वागत है, उम्मीदें लेकर आया है, कोई पिछले पल कुछ खोया, कोई अगले पल पा गया,
लो…आज फिर नया साल आ गया
इस बार गरीबी मिटेगी क्या? किए राजनीतिज्ञों ने वायदे हैं,
शोषण की सीमा क्या होगी? किस-किस के क्या इरादे हैं?
खुलनी और कई पोलें है, जन जागरण यह समझा गया,
लो…आज फिर नया साल आ गया
बेटी भी कहाँ सुरक्षित है, बेटा भी कहाँ संस्कारी है, रिश्ते भी टूटे-बिखरे हैं और भारत माँ बेचारी है, नव वर्ष में नया ‘प्रण’ लेना, यह बात वो फिर समझा गया,
लो…आज फिर नया साल आ गया
‘दीपक’ की लौ और तीव्र करो, इससे अब मशाल जलाएंगे, सच्चाई-अच्छाई के लिए हम देश पे मर- मिट जाएँगे, इस बार छोड़ निज की चिन्ता, सर्वस्व की बात सुना गया,
लो…आज फिर नया साल आ गया
©डॉ. दीपक, हिंदी विभागाध्यक्ष, एस.जी.जी.एस. कॉलेज, पंजाब