लेखक की कलम से

अयोध्या तो सजी ! लव के लाहौर का क्या ?

लाहौर के नौलखा बाजार में शहीदी गुरुद्वारा स्थान को मस्जिद बनाया जा रहा है। कांग्रेसी मुख्यमंत्री कप्तान अमरिंदर सिंह तथा अकालीदल विपक्ष के नेता सुखबीर सिंह बादल की अपील पर भाजपायी विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने इस्लामी पकिस्तान के उच्चायुक्त से नई दिल्ली में गत मंगलवार (28 जुलाई) को इस ज्यादती पर आक्रोश व्यक्त कर दिया है।

लाहौर के इसी इलाके में चौथे मुग़ल बादशाह नूरुद्दीन जहांगीर ने पांचवे सिख गुरु अर्जुन देव को मार डाला था। कारण था कि इस शहीद ने गुरुग्रंथ साहिब को छोड़कर कुरआन पढने से इनकार कर दिया था। जिस गुरुद्वारे पर चाँदसितारा का परचम लहराया जा रहा है, उसी स्थल पर 25-वर्षीय भाई तारु सिंह जी को लाहौर के मुग़ल सूबेदार जकारिया खान ने शहीद किया था। तारु सिंह ने केश कटाने ने इनकार कर दिया तो उनके सर के बाल खाल समेत उखाड़े गए थे। पहले तो नाई को बुलवाया, फिर लोहार को। उसने आरी का उपयोग किया था। फिर भी तारु सिंह ने लाइलाही इल अल्लाह नहीं उच्चारा। इस संधू –जाट सिख पर लघु फिल्म भी बनी। कवीन्द्र रवीन्द्र नाथ टैगोर ने इनकी श्रद्धांजलि में गीत भी लिखा। इसी माह, पौने तीन सौ वर्ष बीते, (15 जुलाई 1775 से) उनका बलिदान दिवस पड़ा था। भाई तारु सिंह सिख बलिदानियों की ढाई सदी से बनी श्रृंखला की विशेष कड़ी थे। उनकी उत्सर्ग स्थली के पास ही शहीदगंज सिंहानिया है। जहाँ ढाई लाख सिख बच्चों और स्त्रियों का मुसलमानों ने सर कलम किया था। कुछ ही आगे है दारा शिकोह चौक। इस मुग़ल युवराज ने उपनिषदों का फ़ारसी में अनुवाद कराया था। उसने काशी में शिक्षा ली। इनके गुरु कांग्रेसी नेता पंडित कमलापति त्रिपाठी के पूर्वज थे।

अगले बुधवार (5 अगस्त) को जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राम जन्मभूमि का पूजन करेंगे तो उन्हें याद रखना होगा कि ठीक हजार किलोमीटर दूर लाहौर में 8 दिसंबर 1992 के दिन तीस हिन्दू-जैन आराधना स्थल मटियामेट कर दिए गए थे। उनमे था भव्य मूलचंद मंदिर। इसे ढाने के लिए इस्लामी इंतजामिया ने बुलडोजर, हथौड़े, फावड़े, कुदाल आदि मुहैया कराये थे। मगर अभी तक वहाँ इन आर्त आस्थावानों को एक इंच भी जमीन नहीं मिली, जबकि पांच एकड़ भूमि मस्जिद के लिए योगी सरकार ने निकटस्थ रौनाही ग्राम में दान दे दी है।

अन्य दुखद उदाहरण भी इस इस्लामी जम्हूरिया से मिलते हैं। सिंध में मनोरा सागरतट पर तीन सौ वर्ष पुराने वरुण देवता का मन्दिर था। वह तोड़ दिया गया। कोहट में शिव मन्दिर था वो अब वस्त्र की दूकान है। मगर बलूचिस्तान प्रान्त, जो भारत का मित्र है, ने हाल ही में क्वेटा के पूर्वोत्तर में मंदिर हेतु भूखंड आवंटित कर दिया है। उसने दो सदी पुराना गुरुद्वारा भी हाल ही में सिखों को लौटा दिया है। यहाँ तोड़कर महिला शिक्षा संस्थान बनाया गया था।

यूं तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को स्वयं लाहौर के गुरूद्वारे की सुरक्षा हेतु पाकिस्तानी शासकों से बात करनी होगी। उन्हें याद दिलाना होगा कि लाहौर का अयोध्या से आत्मिक रिश्ता है। साकेत के युवराज लव ने लाहौर बसाया था। सनातन धर्म छोड़कर मतान्तरण करने वालों के कारण हुई ऐतिहासिक विकृतियाँ तथा विवशताएँ भुलायी नहीं जा सकतीं हैं। भूगोल को खंडित नहीं रखा जा सकता है।

अतीत पर नजर डालें तो प्रमाणित हो जाता है कि यह शहीदी स्थल सिख समुदाय का ही है। मुसलमानों का कोई हक़ ही नहीं है। मुग़ल बादशाह शाहाबुद्दीन शाहजहाँ के एक अदना खानसामें ने नौलखा बाजार का इलाका कभी निर्मित कराया था। समीपस्थ इबादतगाह भी बनी। सामने प्रांगण में काफिरों को कलमा पढवाना अथवा सर कलम करने का जालिम सिलसिला सदियों से चलता रहा। ब्रिटिश राज ने अप्रैल 1849 में पंजाब कब्जिया लिया। तो इसे सिखों को गुरूद्वारे हेतु दे दिया। मुसलमान लोग लाहौर हाई कोर्ट में दावा हारे। पाकिस्तान बनने के बाद फिर दो बार अदालती सुनवाई हुई। मुसलमान दावेदार पुनः हारे। गुरुद्वारा प्रबन्धन समिति का ही आधिपत्य रहा। मगर मुस्लिम लीगियों ने अब बलपूर्वक हथिया कर मस्जिद निर्माण की शुरुआत कर दी। वर्तमान संकट उसी से जन्मा है। यह सब इस तथ्य का सूचक है कि भारत तभी तक सेक्युलर रहेगा, जब तक हिन्दू बहुत संख्या में है।

  ©के. विक्रम राव, नई दिल्ली   

 

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