लेखक की कलम से
दिल में दिमाग न लगा …
मेरे पास दिल नहीं दिमाग नहीं
इक बार और तू बतला दे।
मुझे नहीं मेरे दिल को तू समझा दे।
इक बार और तू बतला दे।
कितनी चाहत है, ख्याली है तेरे लिए
काश इक बार तू जी ले मेरे लिए
कितनी चाहत है, ख्याली है तेरे लिए
प्रेम तो गणित है जिन्दगी का
भाग न लगाया जाय इसमें
चाह तो गुणित होती है दिन-प्रतिदिन
अनुपात न लगाया जाय इसमें
प्रेम तो गणित है जिन्दगी का
भाग न लगाया जाय इसमें
क्रम विनिमेय सम्भव है गुणा में
मगर जिन्दगी में भी यहीं
तो होता है।
जिसमें नहीं होते हैं ये भाव
वह अपने प्यार को
यूं ही तो खोता है
जिन्दगी में क्रम विनिमेय तो होता है।
जहां प्रेम होता है सच्चे अर्थों में
वही बदलते हैं ये अपनी शर्तों में
जहां प्रेम होता है सच्चे अर्थेां में।
© मोनिका चतुर्वेदी, साहपुर, गोंडा, उत्तरप्रदेश