लेखक की कलम से
बेदाग…
मैं उपज हूं, कीचड़ की,
दलदल हूं पर दाग नहीं
मुझे पुष्प होना आता है,
खिल कर मुस्काना आता है,
खुशबू हो जाना आता है
कीचड़ पर बहार हो जाना,
मुझे पुष्प होना आता है।
मैं कंकड़ भी हूं धूल भी,
मैं लिपट जाऊं दुख से,
खुशी में चमकूं ललाट पर,
सहर में आस जगाना आता है,
मुझे राह हो जाना आता है।
व्यर्थ नहीं जग में कुछ भी,
ख्वाहिशों ही भरमाता है,
जरूरत अंकुर बनाता है,
सब स्वार्थ ही आस जगाता है,
स्वार्थ ही लालच बनाता है
जरूरत को स्वार्थ होना आता है।
©सुरभि मिश्रा, लखनऊ, उत्तर प्रदेश