लेखक की कलम से
अगहनी सुप्रभात…
उड़ती उड़ती खिलती अंखियां
फिर काहे को दुखती अंखियां
दो से जब चार हुए तब से ही बेकार हुए
सम्हल सम्हलकर मिलती अंखियां
उड़ती उड़ती खिलती अंखियां
फिर काहे को दुखती अंखियां!
©लता प्रासर, पटना, बिहार
उड़ती उड़ती खिलती अंखियां
फिर काहे को दुखती अंखियां
दो से जब चार हुए तब से ही बेकार हुए
सम्हल सम्हलकर मिलती अंखियां
उड़ती उड़ती खिलती अंखियां
फिर काहे को दुखती अंखियां!
©लता प्रासर, पटना, बिहार