लेखक की कलम से

मूल नक्षत्र का स्वागत …

भुजा पग अविरल चले परवाह नहीं इसको कोई

प्रचंड वेदना से व्यथित मेरुदंड की कौन सुने

कौन सुने तन की व्यथा गाथा कोई कहती रहे

जगत मस्त था है रहेगा परवाह नहीं इसको कोई!

 

©लता प्रासर, पटना, बिहार

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