लेखक की कलम से
शबनमी बूंदों का स्वागत……
मैं पाठक हूं
मैं न रचना को पढ़ता हूं
न रचनाकार को पढ़ता हूं
मैं स्वयं को पढ़ता हूं
स्वयं को ही पढ़ना चाहते हूं
तुम मुझे लिखो
केवल मेरे लिए लिखो
मेरे शिल्प और शैली लिखो
लिखो मेरी पीड़ा और मर्म को
जबतक तुम मुझे लिखते रहोगे
तब तक मैं तुझे पढ़ता रहूंगा।
मैं किसान, कामगार, मजदूर, काश्तकार,चालक,दस्तकार, सैनिक,रंक और कई रुप हैं मेरे। इन सबसे परे मैं पाठक भी हूं
तुम लिखो जरुर लिखो!
©लता प्रासर, पटना, बिहार