लेखक की कलम से

युवाओं से हैं दुनिया…

कृत्रिमता से परहेज़ जारी हैं,
युवाओं से ही दुनिया सारी हैं।
उन्मुक्त हैं, अल्हड़ हैं ये,
बेड़ियों को काटती आरी हैं।
युवाओं से ही दुनिया सारी हैं।1।

लिये विशाल आशाओं के पुंज,
धरा के रक्षक, धरा के निकुंज।
युवाओं ने थामी हैं मशालें,
नहीं सहेंगे बेकसूरों पर तुंज।
स्कन्धों पे इनके बोझ भारी हैं,
युवाओं से ही दुनिया सारी हैं।2।

आये सूर्य का मद्धम प्रकाश,
चहुँओर उग आयी जैसे पलाश।
नव आभा से पुलकित हुए,
थिरकने लगे हैं अब आकाश।
कण-कण में फैली यारी हैं,
युवाओं से ही दुनिया सारी हैं।3।

पल्लवित होने दो, महकने दो,
गुलों को नहीं सिसकने दो।
भविष्य हैं यही कल के,
इनको नहीं सुलगने दो।
इनके बूते ही उम्मीदें सारी हैं,
युवाओं से ही दुनिया सारी हैं।4।

©वर्षा श्रीवास्तव, छिंदवाड़ा, मध्यप्रदेश

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