लेखक की कलम से
कश्मीर की वादियों में पहरेदार जैसा हूं …
कश्मीर की वादियों में पहरेदार जैसा हूँ,
सत्ता में ना होकर भी सरकार जैसा हूँ,
यहां हार कर भी जीत के सिर-ताज जैसा हूँ,
मौन साध कर मैं,आज यहां से जा रहा ।
चुप्पी तोड़ दूं तो सिंह की दहाड़ जैसा हूं,
कश्मीर की वादियों में पहरेदार जैसा हूं,
ना कोई रंग मेरा,ना रूप है,
उस हिम की चोटी को पिघला दूं
ऐसा मेरा स्वरूप है ।
मैं धूप के साथ उसे छांव के सुकून जैसा हूँ,
कश्मीर की वादियों में पहरेदार जैसा हूँ,
मेरी शहादत को सलाम करते,
हर उस युवा के दिल में,
दबी बलिदान की आग जैसा हूँ ,
माता के आंचल से छलके,
अंशुधार से चिरविस्मय तस्वीर के,
बालपन के श्रृंगार जैसा हूं,
कश्मीर की वादियों में पहरेदार जैसा हूँ।।
©कांता मीना, जयपुर, राजस्थान