लेखक की कलम से

उसके पास आँखें नहीं होती …

विश्वास पीठ की तरह है

जिसके पास नहीं होती आँखें

और

न ही कान

सुना है वह अंधा होता है

और

कठोर भी|

 

वह कांच-सा भी होता है

जिसके पीछे कुछ छुप नहीं सकता

पारदर्शी, सपाट, समतल,

नहीं टूटता बड़ी-से-बड़ी ठेस पर भी/ कई बार

लेकिन

ठिकाने पर एक छोटी-सी गिट्टी 

बिखरा देती है

टुकड़ों में उसका अस्तित्व

जिन्हें बटोरना, सहेजना

लहूलुहान होना ही है।।।

©डॉ. पान सिंह (हिन्दी-विभागाध्यक्ष) सिख नेशनल कॉलेज, बंगा, नवाँशहर, पंजाब

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