लेखक की कलम से
उसके पास आँखें नहीं होती …
विश्वास पीठ की तरह है
जिसके पास नहीं होती आँखें
और
न ही कान
सुना है वह अंधा होता है
और
कठोर भी|
वह कांच-सा भी होता है
जिसके पीछे कुछ छुप नहीं सकता
पारदर्शी, सपाट, समतल,
नहीं टूटता बड़ी-से-बड़ी ठेस पर भी/ कई बार
लेकिन
ठिकाने पर एक छोटी-सी गिट्टी
बिखरा देती है
टुकड़ों में उसका अस्तित्व
जिन्हें बटोरना, सहेजना
लहूलुहान होना ही है।।।