लेखक की कलम से

सपनों के पंख कभी थकते नहीं….

कहानी

सुबह से दोपहर तक घर के एक- एक सामान को पिकप में लोड करते-करते विहान थक गया था, इक्का-दुक्का चीजें और कपड़ों के बैग के अलावा सब कुछ गाड़ी में रखी जा चुकी थी। चार साल का बंकु अपने खिलौनों को गाड़ी में रखने नहीं दे रहा था और घर के आँगन में खेल रहा रहा। आँगन के चारों तरफ गोल्डन हैज लगी हुई थी जिसे सुंदर ढंग से काटा गया था, बीच-बीच में क्रिशमश ट्री और विद्यापत्ति के पौधे घर को गार्डन का लुक दे रहे थे।

थका हुआ विहान पत्नी को चाय बनाने के लिये बोलकर आँगन से लगे हुए बरामदे में एक कुर्सी पर बैठ गया, उसने अपने लोवर के जेब से मोबाईल निकाला और whatsup में मैसेज देखने लगा, इक्का-दुक्का मैसेज देखने के बाद उसने अपनी उंगली स्क्रीन पर जोर से स्लाइड की और एकसाथ ढेर सारे मैसेज पर हल्की नजर डाला ज्यादातर मैसेज बेफिजूल थे, उसने फेसबुक खोल लिया और वहाँ भी कुछ देखने लगा अलबत्ता उसका मन कहीं और था, वो गैलरी खोलकर पुराने फोटोस देखने लगा। अचानक दस साल पुराने कुछ फोटो पर उसकी नजर पड़ी, फोटो बहुत साफ नहीं थे क्योंकि पुराने सैट से खिंची गई फोटो थी जिसका कैमरा बहुत सामान्य था लेकिन उसपर नजर पड़ते ही जैसे समय ने रिवर्स गियर ले लिया और वह दस साल पीछे चला गया।

विहान अपनी ग्रेजुएशन कम्प्लीट करने के बाद psc की तैयारी कर रहा था, एक बार प्री निकालने के बाद मेन्स की परीक्षा भी दिला चुका था हालांकि सफलता नहीं मिली थी लेकिन आत्मविश्वास कई गुना बढ़ गया था, सपने आसमान में चित्र बना रहे थे और मेहनत उसमें रंग भर रहे थे। विहान 24 साल का हट्टा-कट्टा, गोरा-चिट्टा, सुंदर और मृदुभाषी नौजवान था, वह अपने माँ-बाप का इकलौती सन्तान था, गाँव में सात एकड़ जमीन, पक्का मकान किसी प्रकार की कोई कमी नहीं थी। उसका अपने दोस्तों में सबसे ज्यादा प्रभाव था। आचानक बाबूजी के देहांत ने विहान के सपनों का पर ही काट दिया वह वापस घर लौट आया। उसके दोस्त विहान को गाँव में पाकर कर बहुत खुश थे। कुछ दिन तो दोस्तों के साथ घूमते -फिरते बीत गया लेकिन वह अपने रचनात्मक स्वभाव के कारण बिना कुछ किये चुप नहीं बैठ सकता था। उसने अपने दोस्तों के साथ गाँव में ही स्वच्छता और वृक्षारोपण आदि का काम शुरू कर दिया, शुरू-शुरू में तो सबने मजाक उड़ाया लेकिन बाद में हर कोई उनके कार्यों की प्रशंसा करने लगे।

कहते हैं की सुंदरता की लोलुपता मनुष्य जीवन की अभिन्नता है, रिया बहुत खूबसूरत और सुलझी हुई लड़की थी, विहान उससे प्रेम करने लगा था, लेकिन कभी बोलने का साहस नहीं कर पाता था, विहान रिया को तब देखता था जब रिया की नजर कहीं और होती थी, कई बार धोखे से दोनों की आँखे मिल जाती तो विहान हड़बड़ा जाता और नजरें चुराने की कोशिश करने लगता, रिया भी शायद उसकी भावनाओं को समझती थी इसलिए कभी-कभी उसे चिढ़ाने वाली नजरों से देख लेती थी। विहान की माँ अपने बेटे की भावनाओं को भांप गई थी, उसने प्रयास भी किया लेकिन विहान बेरोजगार था शायद इसीलिए रिया के माँ-बाप ने उसकी शादी कहीं और कर दी।

विहान का दिल टूट गया लेकिन बिखरा नहीं, उसे तो मुहब्बत से कहीं अधिक नशा था अपने गांव को स्वर्ग बनाने का, उसके सपनों में एक आदर्श गाँव बसता था। उसने चिप्स, अगरबत्ती चॉकलेट डिस्पोजल, आचार, पापड़ जैसे 20-25 घरेलू उत्पादों की सूची बना ली थी, उसे अपने गांव की बेरोजगारी खलती थी, वह उत्पादन की श्रृंखला को शहर से गाँव तक नहीं बल्की गांव से शहर तक ले जाना चाहता था। एक दिन विहान को खयालों में खोए हुए देखकर माँ बोली “बेटा ! आखिर तुम किन ख्यालों में खोए रहते हो तुम भला अकेले दुनिया से कैसे लड़ सकोगे? विहान ने कहा “माँ! मेरी लड़ाई किसी से नहीं है, मैं बस सबको बराबर देखना चाहता हूँ, मैं चाहता हूँ कि व्यापार विकेन्द्रित होकर सब में बंट जाय, गांव के लोग स्वयं रोजगार पैदाकर सकें, किसान अपने खेतों में इस तरह का उत्पादन ले सके की उसकी अच्छी मांग हो और वह पर्याप्त लाभ ले सके, मजदूर के पास ढेर सारे उपकरण हो वह बाकायदा ठेका लेकर काम करे।

मेरा तो ये भी सपना है कि मजदूर अपनी गाड़ी में मशीन लेकर घर से निकले, रीपर से धान की कटाई करे, दोपहर को टिफिन से लंच करे और शाम को अपने बच्चों के साथ डाइनिंग टेबल पर डिनर करते हुए जीवन का सुख ले। इस तरह जब सब कड़ी दर कड़ी एक दूसरे से जुड़ेंगे तो कोई किसी से छोटा नहीं होगा।” विहान की बातों में उम्मीद की किरण दिखती थी, बहुत से लोगों ने विहान को सरपंच चुनाव लड़ने के लिये आग्रह किया, वो तैयार हो गया। बाबूजी के देहांत के बाद उनकी आर्थिक स्थिति बिगड़ गई थी ऊपर से चुनाव का खर्च उसे अपना खेत गिरवी रखना पड़ा। चुनाव में उसके दोस्तों ने खूब सहायता की, रात में छिप कर दारू लाते, दूसरे दिन शाम को उसे घरों-घर बांटते, चुनाव के आखरी दिन तो पैसा भी बांटा गया।

जब विहान चुनाव जीता तो उसके दोस्तों में खुशी की लहर दौड़ गई अब तो चारों तरफ उसकी प्रसंशा होने लगी। थोड़े दिनों बाद उसकी शादी हुई, जिले के सभी बड़े नेता उसकी शादी में सम्मिलित हुए, इससे भव्य शादी इलाके में कहीं नही हुई थी कई दिनों तक उसकी शादी के चर्चे होते रहे, फिर बच्चा हुआ उसका भी शानदार जश्न मनाया गया। घर में खुशियों के साथ साथ कर्ज का बोझ भी बढ़ता गया। इधर वह पंचायत में काम करने की कोशिश कर रहा था लेकिन हर काम मे हो रही शिकायतें औऱ कमीशनखोरी ने आचानक से उसे झकझोर के रख दिया था, वह ऐसा कुछ भी नहीं कर पा रहा था जिसके लिए वह पंचायत तक आया था। उलटा उसके सारे अपने उसके विरोधी होने लगे, उसने सोचा भी नहीं था की राजनीति ऐसी होती है।

भारी अवसाद ने उसे घेर लिया और वह नशे की चपेट में भी आ गया। जब तक वह संभल पाया बहुत देर हो चुकी थी। वह दूसरी बार सरपंच चुनाव लड़ा और हार गया। अब उसके पास कुछ भी नहीं बचा था, उसने सीने में पत्थर रखकर गांव छोड़ने का निर्णय लिया। माँ और पत्नी ने भी उसके निर्णय में अपनी स्वीकृति दे दी थी। गाँव के घर को बेचकर उसने शहर में एक छोटा सा मकान ले लिया था और एक फाइनेंस कंपनी में 15000 रुपये की नौकरी भी खोज ली थी। आज गांव के घर में उसका आंखरी दिन था। वह अपने खयालों में खोया हुआ था तभी पत्नी की आवाज से वह चौंक गया “चाय पी लीजिये” पत्नी ने कहा, विहान ने एक गहरी सांस छोड़ी, फिर अपनी आंखों को मलने के बाद एक हाँथ से चाय ले कर पत्नी की ओर देखकर बोला “इतने सपने टूटे हैं कि अब तो सपनों से डर लगने लगा है”। पत्नी विहान के कंधों पर हाथ रख कर धीरे से बोली ” सपनों के पंख कभी थकते नहीं विहान सपनों से ही तो दुनिया सुंदर बनती है।”

©पारसमणी शर्मा, कवर्धा (कबीरधाम)

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