लेखक की कलम से

आओ दर्द बांट लें …

दर्द आओ बांट लें थोड़ी बहुत

एक-दूसरे को देख मुस्कुरा लें

आई है आपदा तो टल जाएगी

ये सोच ही थोड़ा हमें बहलाएगी

थरथरा रही हैं उंगलियां मेरी

बूढ़े ढो रहे सायकिल से संगनी

बेटी अकेली चिता जला रही

शब्द बाबरा उलझकर रह गया

भाव सब आंसू बन जल रही!

©लता प्रासर, पटना, बिहार               

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