लेखक की कलम से

नसीरुद्दीन शाह ने CAA और NCR पर कहा- लोगों को फैसला करना चाहिए कि आखिर किसका सपोर्ट कर रहे हैं

अनुपम खेर और नसीरूद्दीन शाह एक-दूसरे पर कर रहे हैं आरोप-प्रत्यारोप

इस थप्पड़ की गूंज बड़ी देर तक सुनाई देगी…..

देशभक्ति पर बनी फिल्म में अनुपम खेर को जब दिलीप कुमार जोरदार थप्पड़ मारते हैं तो ये डायलाग बड़ा मशहूर हुआ था, इस थप्पड़ की गूंज बड़ी देर तक सुनाई देगी। अनुपम खेर और नसीरुददीन शाह में भी ऐसा ही कुछ हुआ। नसीरुददीन शाह ने सीएए और बाकी मसलों पर अनुपम खेर को जोकर और चापलूस क्या कह दिया। खेर तिलमिला उठे और फिर तुरत जबाब देते हुए नसीर को नशेड़ी बता दिया।

बहरहाल इस बहाने एक बात तो सही होगी कि कम से कम बालीवुड के वो लोग जो दावा करते थे कि फिल्में समाज का आईना होती हैं, अब समाज में हो रहे बदलाव पर खुलकर बोलने लगे हैं। नहीं तो शाहरुख खान जैसे बड़े एक्टर भी ब्रांड के नुकसान के डर से कह दिया था कि हम तो भांड हैं और यही ठीक है, हमको विवादित मुददों पर नहीं बोलना चाहिये।

दरअसल बालीवुड वाले हमेशा हालीवुड की नकल तो करते हैं, लेकिन उनकी तरह समाज के मुद्दों पर बोलने की हिम्मत नहीं दिखा सकते। सवाल ये नहीं है कि आप किसी मुद्दे के पक्ष में बोलें या विरोध में लेकिन जब आपको लगे कि बोलना चाहिये तो फिर डर कर चुप क्यों रहे। कम से कम ये बदलाव तो अब खुलकर दिखने लगा है और अच्छी बात ये है कि इसमें नई पीढ़ी के कई कलाकार खुलकर सामने आ रहे हैं।

एक और अहम बात है कि हिंदी फिल्मों और भाषाई फिल्मों के कलाकारों में इस बात पर बड़ा मतभेद रहा है। जहां हिंदी फिल्मों के कुछ ही कलाकार राजनीती पर बात करते हैं वहीं क्षेत्रीय भाषाओं के सुपरस्टार ना केवल बोलते हैं बल्कि राजनीति में खुलकर हिस्सा भी लेते रहे हैं। 70 के दशक में जरूर हिंदी सिनेमा के कुछ कलाकार देवआनंद, एके हंगल जैसे लोग बोलते रहे हैं लेकिन जैसे-जैसे सिनेमा में पैसे का दखल बढ़ने लगा तो सब चुप होते चले गये। यहां तक कि पर्दे पर विलेन की धुनाई कर हीरो बनने वाले अंडरवर्ल्ड की धमकियों के खिलाफ भी बोलने से डरते रहे।

तमिल सिनेमा में एनटीआर हो या जयललिता, कमलहासन हो या विजयाशांति, मराठी में श्रीराम लागू हों या वी शांताराम सब मुददों पर चुप नहीं रहे। अब कम से कम हिंदी सिनेमा के नये कलाकारों को लगने लगा है कि बोलना चाहिये।

नयी पीढ़ी में आमिर खान खूब बोले लेकिन जब लगा कि नुकसान ज्यादा हो रहा है तो चुप हो गये। मगर दीपिका पादुकोण, जीशान अहमद, स्वरा भास्कर जैसे नाम उदाहरण बन रहे हैं तो दूसरी तरफ सरकार के साथ खड़े होकर बोलने वालों में कंगना रानाउत, प्रसून जोशी जैसे लोग भी है। इसमें कोई बुराई नहीं कम से कम उस मंच पर जिससे समाज को रोशनी दिखाने की उम्मीद की जाती है अगर मुद्दों पर स्वस्थ बहस करे। बस इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिये कि ये मतभेद मुद्दों तक ही हो व्यक्तिगत छीछालेदार निकालने पर नहीं।

बॉलीवुड एक्टर नसीरुद्दीन शाह (Naseeruddin Shah) ने अनुपम खेर (Anupam Kher) को ‘जोकर’ और ‘चापलूस’ कहा तो अब अनुपम खेर ने भी उन्हें करारा जवाब दिया है। उन्होंने कहा कि आप मेरे खून की बात कर रहे हैं तो बता दूं कि मेरे खून में हिन्दुस्तान है। जिन पदार्थों का आप सेवन करते हैं, उससे आप सही और गलत का भेद नहीं कर पा रहे।

Anupam Kher

✔@AnupamPKher

‘द वायर’ को दिए अपने इंटरव्यू में नसीरुद्दीन शाह ने सीएए और एनआरसी का विरोध करते अनुपम खेर पर कड़ा हमला बोला था। उन्होंने कहा था कि अनुपम खेर इस मामले में काफी मुखर रहे हैं, लेकिन मुझे नहीं लगता कि उन्हें गंभीरता से लिया जाना चाहिए। वो एक जोकर हैं। एनएसडी और एफटीआईआई में उनके समकालीन रहे लोग उनके चापलूस स्वभाव के बारे में बता सकते हैं। ये चीज उनके खून में है और वे इसमें कुछ भी नहीं कर सकते, लेकिन बाकी लोग जो इनका समर्थन कर रहे हैं, उन्हें फैसला करना चाहिए कि वे आखिर किसका सपोर्ट कर रहे हैं।

©संदीप सोनवलकर, मुंबई
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