लेखक की कलम से

फर्क पड़ता है..सबको

एक बार समुद्री तूफ़ान के बाद लाखों मछलियाँ किनारे पर तड़प कर मर रहीँ थीं। इस भयानक स्थिति को देखकर पास में रहने वाले एक 6 वर्ष के बच्चे से रहा नहीं गया और वह एक-एक मछली उठा कर समुद्र में वापस फेकनें लगा।

यह देख उसकी माँ बोली, बेटा लाखों की संख्या में हैं, तू कितनों की जान बचायेगा। यह सुनकर बच्चे ने रफ्तार और बढ़ा दी, माँ फिर बोली बेटा रहनें दे कोई फर्क नहीं पड़ता।

बच्चा जोर जोर से रोने लगा और एक मछली को समुद्र में फेकतें हुये जोर से बोला माँ “मुझे नहीं, लेकिन इसको तो फ़र्क पड़ता है” दूसरी मछली को उठा फिर बोला माँ इसको तो फ़र्क पड़ता है। माँ ने बच्चे को झट सीने से लगा लिया।

जितना हो सके दूसरों का सहारा बनिये, उन्हें प्रेम दीजिये, हौसला दीजिये, उनका दर्द बाँटिये। न जाने कब आपके कारण किसी को पुनः जीवन मिल जाये। शायद आपको फर्क न भी पड़े पर उसको तो फर्क पड़ता है।

संकलन
संदीप चोपड़े,
सहायक संचालक विधि प्रकोष्ठ बिलासपुर

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