लेखक की कलम से
वाह दिसंबर ….आह दिसंबर
धीमी धीमी सर्द हवा
भीनी भीनी फूलों की खुशबू
अंदाजे बयां बहुत खूब है
दिसंबर तेरे आने का ..
लगता है यूं ही ठहर जा
मौसम है आशिकाने का ..
लंबी रातें छोटे दिन
अलसाई सी है पल पल छिन छिन
सब कुछ वापस आ गया
बस एक ‘तेरे ‘ सिवा ।
पढने की ललक लिखने की कसक
आंखों की नमी ओस सी छुअन
दिसंबर तेरे अंदर सब है
और मुझमें ..मेरे ‘ मैं ‘ के सिवा ।
बस ..अंतिम …
महंगी रजाई के तले
नींद आने की दुआ मांगते हैं
खुले आसमां के तले ‘ वो ‘ ..
चीथड़ों में लिपट सो जाते हैं ..।।
@डॉ. सुनीता मिश्रा, बिलासपुर, छत्तीसगढ़