लेखक की कलम से
हूं यहीँ कहीं …
काव्य
मैं तो हवा में उड़ता आसमानों
तितली बन मंडराया डार डार –
बूंद बूंद खेला सागर की मौजों से
कहां कहां ढूंढोगी मुझे मैं नहीं हूं वहां
एक बार झांक ओ दिलके दरीचों से __
मैं थिरक रहा तेरे स्वप्निल
पलकों पर _
कैसे जान पाओगी मेरे होने का राज़!!
मैं हूं यहीं कहीं तेरे आस पास तेरे आस पास __
©मीरा हिंगोरानी, नई दिल्ली