लेखक की कलम से

वो कौन थी …

 

कोसती थी भाग्य को

रोती  थी दुर्भाग्य को

टूटती थी बिखरती थी

उफनती थी सिमटती थी

वेदना चुपचाप सहती,

मगर वो कुछ भी न कहती…

 

 

हाय रे, विडंबना

भंग हुई साधना,

जो अभी नहीं मिला,

उसके पीछे भागना,

उसकी मंजिल उस तरफ,

नदी दुःख की बीच बहती।

मगर …..

 

 

 

वो कौन थी

वो किसकी थी

वो किसके लिए आयी

ये तय ही कर न पायी

जन्मों- जन्मों से युगों तक,

आस में प्रियतम के रहती,

मगर…..

 

 

 

टकटकी हरदम लगाए ,

आस मन मंदिर जगाए

अनवरत सांसों की माला,

नाम तेरा गाये आला,

स्वप्न का जीवन निभाती,

हाथ से प्रतिबिम्ब गहती,

मगर…..

 

 

जोहती आंखें तो पत्थर हो गयी,

और उम्मीदें भी जर्जर हो गईं,

क्या इस जीवन में मिल जाओगे,

या अभी और भी तरसाओगे,

हाथ जोड़ कहती अपना लो,

होगी कृपा तुम्हारी महती।

मगर….

 

 

©क्षमा द्विवेदी, प्रयागराज                

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