लेखक की कलम से

मजदूर न बनाना …

हे! प्रभु इस दुनियाँ में,

किसी को इंसान मत बनाना।

अगर इंसान बनाते हो,

तो उसे सामर्थवान बनाना।।

हे! प्रभु इस जहान में,

किसी को मजदूर न बनाना।

अगर  मजदूर बनाते हो तो,

उसे मजबूर न बनाना।।

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हे!प्रभु इस जगत में किसी के,

हाथों में छाले न देना।

जिंदगी में कभी बेबसी,

और खाने के लाले न देना।।

हे !प्रभु तूने इस गरीब के लिए,

पापी पेट क्यों बनाया।

पेट बनाया तो खुले आसमां में,

यूँ भूखे क्यूँ सुलाया।।

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मेरी आँखों में खुशी से ज्यादा,

आँसुओ की पानी है।

मैं चाहे जिस भी रूप में रहूँ,

बस एक ही कहानी है।।

सबको खुशी देने वाला,

क्यूँ गम से मैं चकनाचूर हूँ।

कर्ज के बोझ से लदा हुआ,

देख मैं बेबस मजबूर हूँ।

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मिट्टी से अमृत निचोडने वाले,

मैं खास मशहूर हूँ।।

फिर भी जग से ठुकराए,

मैं अस्तित्वहीन मजदूर हूँ।।

क्या जगत की संपदा में,

मेरा कोई अधिकार नहीं है ।

फिर अर्थ के साम्राज्य में,

क्यूँ सम्यक व्यवहार नहीं है।।

©श्रवण कुमार साहू, राजिम, गरियाबंद (छग)

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